Author is not an alien

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I write because we had deleted enough

Monday, May 26, 2014

कहानियां

बचपन में रात होते ही
घर की छत पर सोया करते थे
तब सुनी थी बहुत कहानियां
राजा- रानी की माँ से
शिव पार्वती की दादी माँ से
फिर किताबों ने खोली एक नयी खिड़की
मिली मुझे सिन्ड्रेला जैसी लड़की
रपुन्ज़ेल के लम्बे बालों के किस्से
और हर कहानी में हैप्पी एंडिंग वाले हिस्से
कुछ नॉवेल ने ,कुछ सिनेमा ने
पीछे छोड़ दिया दादी माँ को
महादेवी का अकेला जीवन
या अमृता –इमरोज़ का एकाकीपन
बच्चन को ना कुछ भूलना था ना याद रखना
मुक्तिबोध का अपने ही दूजे से लड़ना
निराला ढूँढ रहे थे अपनी “सरोज” को
और दिनकर अपने खोये ओज को
अज्ञेय की कलम चलती चली जा रही थी
और नागार्जुन को देश की चिंता मार रही थी
व्हिस्की और वुमन के साथ खुशवंत थे खुश
और नयी सोच वाले अपने नाम से नाखुश
ज़िन्दगी की समझ के परदे खोलते ये लोग
एक अनसुलझी पहेली सुलझा रहे थे 
इन कहानियों पर पड़ी गर्त हटाने की कोशिश थी 
या फिर अपना सच चीख कर बता रहे थे 
रिश्तों के मूल के बीच में 
किश्तों सी कटती है ज़िन्दगी
यह खुद देख रहे थे कि
दुनिया को दिखा रहे थे 
फिर जब उठाया उसी सिन्ड्रेला को
तो वो कुछ हँसती हुई सी लगी
'जीना ' और 'जीना' के बीच का फासला 
मुझे वही पार करा रही थी 
कभी fantasy सा लगता सच,या सच की तरह fantasy
किताबों से निकली कहानी बुनी जा रही थी 
कुछ खिडकियों पर पड़ती बारिश सा 
जो अन्दर ना गिरकर भी भीगा रही थी 
दूर सी ,अजनबी सी लगती वो दुनिया
क्यूँ खिसकती नज़दीक आ रही है
बचपन का nostalgia कहूँ इसे
या मोहब्बत हो चली है 


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