Author is not an alien

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I write because we had deleted enough

Wednesday, April 29, 2015

अखिल भारतीय हिंदी OR कथा समारोह

बिहार में पहले अखिल भारतीय हिंदी कथा समारोह का आयोजन हुआ इससे पहले कि आप यह टोके कि हिंदी और कथा के बीच मैंने OR क्यूँ लगाया है तो मेरा यह मानना है कि यह OR आ गया है हिंदी और साहित्य के बीच. इस समारोह में समाज के हर हिस्से को छूती कहानियां पढ़ी गयीं ,गाँव की पगडंडियों ,कस्बों से निकलकर अपार्टमेंट के बेडरूम तक पहुँच गयी कहानियां ,छोटे स्केच में बड़ी तस्वीर दिखाती यह कहानियां आज जब पुराना होने का सीधा अर्थ है आउटडेटिड हो जाना तब भी हिंदी कहानी की कोई बात “'तेरी कुड़माई हो गई?' (उसने कहा था , चंद्रधर शर्मा गुलेरी )के बिना पूरी नहीं होती. कथा समारोह शुरू हुआ सरस्वती सम्मान से पुरस्कृत गोविन्द मिश्र की कहानी “फांस” से ,कहानी बुन्देलखंडी के तड़के लगी दो चोरों की कहानी थी जिनको शहर की हवा लग कर भी नहीं लगी थी ,गाँव एक फांस की तरह आज भी उनके ह्रदय में था ,जो फंसा भी था और चुभता भी ,यह फांस उन लोगों के शहरातु और घाघ बनने के बीच में अड़ा था. जब पलट कर पीछे दर्शक दीर्घा को देखा तो एक फांस मुझ में भी रह गयी जो इस ब्लॉग का शक्ल अख्तियार कर रही

 रविन्द्र कालिया, ममता कालिया ,नासिरा शर्मा ,प्रो. असगर वजाहत ,अखिलेश जैसे दिग्गज कहानीकार और उनकी समीक्षा करते आलोचक हर कोई दिखा यहाँ ,और दर्शक दीर्घा में बैठे थे साहित्य के विद्यार्थी और साहित्य के प्रार्थी.सिर्फ चंद साहित्य के विद्यार्थी और साहित्यकार बनने को इच्छुक लोग .आज हिंदी or कथा, हिंदी or कविता , हिंदी or उपन्यास , हिंदी or बेस्टसेलर ...............एक बहुत बड़ा OR” आ गया है हिंदी और उसके साहित्य के बीच में .यहाँ प्रश्न उदासीनता का नहीं है ,प्रश्न ना जानने का है और इसी ना जानने की वजह से  हिंदी के उस विरासत से वंचित होने की है जिस पर समय की गर्त पड़ गयी है। सचमुच, आज हमारे समाज में साहित्य कुल मिलाकर हाशिये पर ही है और साहित्यकार, कुल मिलाकर अपनी ही रची एक छोटी-सी दुनिया में सिमटते लग रहे हैं ,विडम्बना यह भी है कि यह स्थिति किसी को चिंतित नहीं कर रही।

इसी कथा समारोह में एक सज्जन से बात हुई ,एक युवा आईएस अधिकारी को उनकी साहित्यिक समझ और “फांस” कहानी पर की गयी समीक्षा से खासा प्रभावित यह डॉक्टर साहेब कहते हैं “सर्वेश्वर दयाल सक्सेना से पारिवारिक सम्बन्ध थे हमारे ,यूँ तो मेरी शिक्षा दीक्षा हिंदी मध्यम में हुई ,और लिखता मैं भी हूँ पर हिंदी में comfortable नहीं हूँ ,अच्छा लगा देखकर की यंग लोग भी हिंदी को पढ़ते और जानते हैं”.मैं भाषायी डिबेट में नहीं पड़ना चाहती पर यह comfortable शब्द बहुत खुबसूरत ढंग से हिंदी भाषा को लेकर हमारे अवचेतन में मौजूद हीनता को ढक देता है।

इंग्लैंड के महान रचनाकार चार्ल्स डिकेन्स की जन्मस्थली है रोचेस्टर। दो सौ साल हो चुके डिकेन्स को दिवंगत हुए। पर आज भी इस शहर के लोग अपने महान रचनाकार के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन के लिए हर साल उनके जन्मदिन पर तीन दिन का जश्न मनाते हैं। तीन दिन का जश्न !!! और हम एक विराट साहित्यिक सम्पदा को बस यूँ ही जाने दे देते हैं और हर साहित्यिक समारोह जो कि एक उत्सव होना चाहिए था “just another literary meet” बनकर रह जाता है


भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है ,यह हमारी अस्मिता का प्रश्न भी है ऐसा नहीं है कि पढ़ा नहीं जा रहा है ,लिटरेचर फेस्टिवल्स में पैर रखने की जगह नहीं होती ,फ्लिप्कार्ट और अमेज़न मल्टी बिलियन डॉलर की लागत से किताबें बेच रहे हैं तो फिर हिंदी को ही एक अदद बेस्ट सेलर क्यूँ नहीं मिल रहा ? हिंदी को भी यह समझना होगा कि बाज़ार अब नियम लिख रहा है और इन्टरनेट है सबसे बड़ी साहित्यिक पत्रिका भूमंडलीकरण की ट्रेन जब निकली तो हिंदी भाषा की गाड़ी छूट गयी ,बहुत देर से हिंदी को यह समझ में आया कि अब चर्चाएं कॉफ़ी हाउस में नहीं होती ,अब पत्रिकाएँ आपको नेशनल हीरो नहीं बनाती और अगर संचार क्रांति को नहीं थामा तो इस कड़ी को टूटते देर नहीं लगेगी

समारोह के समापन के दिन रविन्द्र कालिया जी और ममता जी को दिल्ली निकलना था, उनसे मिलने को उत्सुक मैं भागती दौड़ती वहां पहुंची ,मैंने आयोजकों में से एक जो तीन दिन से विभाग की ओर से पूरे कार्यक्रम की कमान संभाले हुए थे ,उनसे पूछा “ममता जी एअरपोर्ट के लिया निकल गयी हैं क्या ?”

जवाब आया “ कौन ममता जी? “

मैं- ” ममता कालिया और रविन्द्र कालिया

जवाब आया – “ यहाँ तो बहुत सारी मैडम लोग आई हैं ,सॉरी हम नहीं पहचानते”



बस यही स्थिति हिंदी साहित्य की नहीं होनी चाहिए . ज़रूरी है जीवन में साहित्य के संस्कारों के लिए जगह बने। यह जगह हमें बनानी पड़ेगी।क्यूंकि हिंदी सिर्फ हमारे राष्ट्र की भाषा नहीं है ,वह एक बेमिसाल साहित्यिक सम्पदा की धनी भाषा है ,हमारे ऐतिहासिक विरासत की अनुगूंज का स्वर है और सबसे ज़रूरी यह नाम ,जाति,वर्ण,वर्ग और क्षेत्र के कहीं ऊपर हमारी पहचान है 

ममता  कालिया ,रविन्द्र कालिया ,सत्यदेव त्रिपाठी और अखिलेश  जी के साथ 

Thursday, April 2, 2015

Dil Waali Diwali …….

It was 2013,diwali celebrations around and I was missing home , The reason being with the exams around the corner I was in Delhi ,busy studying but badly missing home .

A call from some friends who were all away from home and we came out with a plan ,plan to celebrate diwali at an old age home . So we contributed money, bought sweets, blankets ,got some food for around 200 people and on the morning of diwali we went to a help home for the mentally retarded, old people who have been disowned from their families.

The sight was heartbreaking ,same old stories ,away from home ,their sons and daughters abandoned them ,some were suffering from Alzheimers and could not remember their address and the saddest part was some pretended to not remember because ythey knew they were unwelcome at home ,a burden who would be an extra espenditure in this age where prices are reaching sky limits.

We sat ,heard them ,just listened to them and they spoke ,spoke about their youthful days ,their partners who were long dead not even for a second cursing their children –That’s what a Father and mother is ,we could realize only if we be one.

We played games ,ate together ,distributed blankets and took their blessings. One of the best diwali I had because I gave an ear to men and women who were failed by their own loved ones ,I gave an ear to their dil ki baat.

Go do something like this on any of your special day ,you won’t realize how great it feels ,how satisfying the whole feeling of listening to someone’s dil ki baat ,it makes you a better human being and isn’t it the most important thing after all.


Some dil ki baat about parents by Ann Tran
When you feel like breaking down or crashing in,
Who do you turn to, to forgive your sin?
When you cried your lonely tears,
Who will be there to fight your fears?
And when it feels like no one would understand,
Who was there to hold your hand?

There are people whom you can't replace,
They're the ones who gave you your face.
They'll love you through thick and thin,
They show you the light from deep within.
And if by chance, you happen to die,
They'll be the ones who will really cry.

You see, my friend, there's no one who can love you more,
Than your very own parents, that's for sure.
Always remember that this is true,
That wherever you go, your parents will be there for you.
I am participating in the #DilKiDealOnSnapdealactivity at BlogAdda in association with SnapDeal.”

Dil ki baat while saying alvida ….

College –a place where we enter as boy and girls and leave as men and women. A journey of five year in which we all were companions ,where we form groups ,where we learn together ,where we create friendships ,where we fall in love and yes where we raise misunderstandings. Exactly the same happened with us , we had been together for years ,best buddies in first year ,misunderstandings crept in second year ,it was carried on till 2 more years . we stared empty glances ,avoiding each other and also hooting sometimes .

It was the last day of our college ,I was feeling uncomfortable , a feeling of emptiness started sinking in ,our juniors had arranged a grand goodbye for us ,slam books were filled ,they were big cards amid the noise of dhol and nagada .We the dance crazy ones started dancing on dhol together ,the whole batch and suddenly it crept in that we won’t be able to say each other again . All the fights, all the misunderstandings ,the enemity seemed meaningless ,the boundaries of groups started blurted out. I knew this was it ,I won’t get a second chance to say my “Dil Ki baat”.

I went to my ex-best friend ,ex because once we used to swear by each other’s friendship and today we could not stand an eye to eye to each other. I went to him and said “ I don’t know who was wrong and who was right ,I just know that I had some great memories with you . for all the crazy and fun filled times we spent ,I am sorry and from here on let’s say goodbye as friends”

We hugged ,hugged and cried ,cried for a long time wiping away all the time we were acting as foes .Looking around we saw many crying faces ,people saying sorry , apologies exchanged and tears of joy ,tears of the feeling that why we could not say a little sorry , a small” dil ki baat” and why we waited for our farewell day for mending up things . 

Better late than never ,25th nov 2009 will be one of the most memorable days of my life because that day I saw a whole batch of doctors ,100 of them sharing their dil ki baat and making the day etched as a day to remember.

For my friends:
You helped me laugh 
you dried my tears 
because of you I have no fears
Together we live 
together we grow
teaching each other what we must know
You came in my life and I was blessed 
I love you friend 
you are the best
Release my hand and say good-bye 
please my friend don't you cry
I promise you this it's not the end 
'cause like I said you're my friend


I am participating in the #DilKiDealOnSnapdealactivity at BlogAdda in association with SnapDeal.”



A group photograph...............Saved and Treasured