कैप्टेन विक्रम बत्रा .परम
वीर चक्र अगर स्वर्ग से नीचे देख रहे होंगे (अगर!) तो जिस देश के लिए उन्होंने
शहादत को हसते हसते पाकिस्तानी सैनिकों से गोलियों के बीच मजाक करते गले लगा लिया
,उस देश के नेताओं पर उन्हें शर्म आती होगी . टाइगर हिल को फतह करने के बाद
उन्होंने भी नहीं सोचा होगा की “ यह दिल मांगे मोर” अटूट देशभक्ति की मिसाल बन
जायेगा और क्या आपने सोचा है कि एक सैनिक देश के लिए अपनी जान क्यूँ कुर्बान करता
है? क्या उसे अपनी ज़िन्दगी प्यारी नहीं होती? क्या उसे अमर होना होता है ?
नहीं !! एक सैनिक अपने
कर्तव्य के लिए “ on the line of ड्यूटी “ अपनी जान न्योछावर करता है ,किसी तमगे
,भाषण ,आर्थिक सहायता या वाह वाही के लिए नहीं. और अगर हम शहीद विजयंत थापर या
शहीद अरुण नैयेर के ज़ज्बे की बात करें या शहीद मनोज पाण्डे के गुस्से की –इन सभी
शहीदों में एक बात सामान है – उनकी जिंदादिली मौत जैसी विषम परिस्थिति में भी.
हाल में ही श्री नरेन्द्र
मोदी ने शहीद कैप्टेन विक्रम बत्रा के अमर शब्द वोट मांगने के लिए इस्तेमाल किये
,और अगर आप उनसे कारगिल युद्ध के सिर्फ परम वीर चक्र प्राप्त करने वाले सैनिकों के
नाम पूछेंगे तो उन्हें पता नहीं होगा. भारतीय सेना अपने बलिदान की कीमत नहीं मांगती
है तो राजनीति के नाम पर उनका ना तो मत घसिटिये . अगर यह कम नहीं था तो मिनाक्षी
लेख ने यहानक कह दिया कि “यह दिल मांगे मोर “ पर किसी का कॉपीराइट नहीं है .तो
श्रीमती लेखी –ये दिल मांगे मोर पर पूरे देश क कॉपीराइट है ,तिरंगे में लिपटे
लाखों लोगो के आंसुओं के बीच अपना अंतिम सफ़र करते कैप्टेन बत्रा पर हर देशवासी का
कॉपीराइट है
राजनीति करिए ,लम्बे वादे
करिए पर वीरों की शहादत का मजाक मत बनाइये , ये दिल मांगे मोर पर किसी भी पार्टी
की बपौती नहीं है यह सैनिकों के खून लेकर लहराते हुए तिरंगे का प्रतीक है